Jay Shree Krishna: द्वारका नगरी समुद्र के नीचे छुपी हुई रहस्यमयी 1 नगरी

Jay Shree Krishna द्वारका नगरी

Jay Shree Krishna द्वारका नगरी श्रीकृष्ण पर किसी शिकारी ने हिरण समझकर बाण चला दिया था, जिससे भगवान श्रीकृष्ण देवलोक चले गए, उधर, जब पांडवों को द्वारका में हुई अनहोनी का पता चला तो अर्जुन तुरंत द्वारका गए और श्रीकृष्ण के बचे हुए परिजनों को अपने साथ इंद्रप्रस्थ लेकर चले गए. इसके बाद देखते ही देखते पूरी द्वारका नगरी रहस्यमयी तरीके से समुद्र में समा गई।

हिंदू लेखों में कहा गया है कि जब कृष्ण ने आध्यात्मिक दुनिया में शामिल होने के लिए पृथ्वी छोड़ दी, तो कलि युग शुरू हुआ और द्वारका और उसके निवासी समुद्र में डूब गए। जलमग्न होने की कहानियां 2004 में भारत में आई सुनामी जैसी सुनामी भी पैदा कर सकती हैं।

मथुरा छोड़ने के बाद श्री कृष्ण ने अपने परिजनों और यदुवंश की रक्षा के लिए समुद्र के निकट द्वारका नगरी का निर्माण विश्वकर्मा के हाथों करवाया था। द्वारका नगरी के समुद्र में डूबने के पीछे दो पौराणिक घटनाएं जिम्मेदार मानी जाती हैं। एक घटना गांधारी के श्राप से जुड़ी है वहीँ दूसरी घटना का संबंध श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को ऋषियों से मिला श्राप था।

द्वारका नगरी, प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अनुसार एक अद्वितीय नगर है, जिसे समुद्र के नीचे डूबा होने का कहा जाता है, जिससे इतिहासकारों, पुरातात्वज्ञों, और उत्साहित लोगों का आकर्षण है। द्वारका का उल्लेख महाभारत में मिलता है, जो प्राचीन भारतीय पाठों में से एक है। इस नगर के डूबने से एक रहस्यमयी सिद्धांत उत्पन्न हुआ है जिसने इतिहास और उत्साहितों की कल्पना को जकड़ा हुआ है।

Historical Significance:
द्वारका, जिसे द्वारावती भी कहा जाता है, कहा जाता है कि इसे भगवान कृष्ण के राज्य की राजधानी थी। महाभारत में इस नगर की शानदारता का वर्णन है, जिसे एक समृद्धि और धनवान बड़े शहर के रूप में वर्णित किया गया है जिसमें भव्य महल और मंदिर शामिल हैं। यह नगर प्राचीन भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समृद्धि को दर्शाता है।

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Kya Dwarka sach mein paani ke niche hain? | क्या द्वारका सच में पानी के नीचे है?

कहा जाता है कि प्राचीन भारत का द्वारका शहर अरब सागर के नीचे डूब गया था । अब, पानी के नीचे पुरातत्वविद् इसके अस्तित्व को साबित करने के लिए इसकी शहर की दीवारों की नींव की तलाश कर रहे हैं। भारत के सात पवित्र तीर्थस्थलों में से एक, द्वारका शहर का न केवल धार्मिक महत्व है, बल्कि पुरातात्विक महत्व भी है।

दरअसल गांधारी ने युधिष्ठिर के राजतिलक के बाद महाभारत की घटना के भगवान कृष्ण को ज़िम्मेदार ठहराया था। अपने पुत्रों के मारे जाने के दुःख और क्रोध की अग्नि में जलती हुई गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप देते हुए कहा था कि जिस प्रकार मेरे कुल का नाश तुमने नाश किया है और मुझे दुःख दिया है उसी प्रकार तुम्हारे कुल का भी नाश हो जाएगा।

दूसरी घटना का संबंध ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को दिया गया श्राप था। एक दिन जब महर्षि विश्वामित्र, कण्व और देवर्षि नारद द्वारका पहुंचे तो वहां यादव कुल के नवयुवक ने उनके साथ हंसी-ठिठोली करने की सोची।
हंसी-मजाक के उद्देश्य से वे श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को एक स्त्री भेष में उन सभी ऋषियों के पास ले गए।  वे नवयुवक कहने लगे कि ये स्त्री गर्भवती है, क्या आप बता सकते हैं कि इसके गर्भ से कौन उत्पन्न होगा?

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Dwarka ko shraap kisne diya tha? | द्वारका को शाप किसने दिया था?

द्वारका के ठीक बाहर, भगवान कृष्ण और उनकी पत्नी रुक्मिणी देवी को ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण यहां रुकने के लिए मजबूर होना पड़ा था, जिन्होंने क्रोध में हजारों साल पहले शर्त लगाई थी कि यह स्थान पीने के पानी से रहित होगा। ऐसे में आज तक पूरे द्वारका क्षेत्र में लोगों को पीने का पानी मिलने में दिक्कत होती है।
इस दौरान ऋषियों का शाप इस तरह सत्य हुआ कि साम्ब ने जिस मूसल को उत्पन्न किया था उसके प्रभाव से मैदान में मौजूद खड़ी एरका घास को लड़ाई के दौरान को भी उखड़ता उससे एक मूसल उत्पन्न होने लगता।  वह मूसल बहुत शक्तिशाली था जिसके के केवल एक वार से मृत्यु संभव थी।
इस तरह वहां मौजूद सभी लोग मारे गए। जब श्री कृष्ण उस प्रभास क्षेत्र में पहुंचे तो अपने परिजनों को मृत देखकर अत्यंत दुःखी हो गए। क्रोध में आकर श्री कृष्ण ने वहां खड़ी घास को उखाड़ा तो वह मूसल में तब्दील हो गई।  इसके बाद श्री कृष्ण ने उस मूसल से वहां मौजूद जीवित लोगों पर वार कर दिया क्योंकि इन लोगों ने अपने ही लोगों को मारा था। श्री कृष्ण ने  वासुदेवजी को इस संहार के बारे में बताया और कहा कि आप स्त्रियों और बच्चों को लेकर अर्जुन के साथ हस्तिनापुर चले जाइये।
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Shree Krishna ko Gandhari ne shraap kyu diya? | कृष्ण को गांधारी ने श्राप क्यों दिया था?

जब उसने पांडवों के सभी पुत्रों की मृत्यु की खबर सुनी, तो उसने पांडवों को गले लगाया और उनके नुकसान के लिए उन्हें सांत्वना दी। बाद में यह सारा विनाश होने देने के लिए उसका क्रोध कृष्ण पर भड़क गया। उसने श्राप दिया कि वह, उसका शहर और उसकी सारी प्रजा नष्ट हो जायेगी । कृष्ण ने श्राप स्वीकार कर लिया.

इसके बाद श्री कृष्ण प्रभास क्षेत्र में पहुंचे तो उस समय उनके बड़े भाई बलराम जी ध्यान मुद्रा में थे। श्री कृष्ण को देखकर बलराम के शरीर से शेष नाग निकले और समुद्र में चले गए। फिर श्री कृष्ण श्राप और नरसंहार के बारे में विचार करते हुए इधर-उधर घूमने लगे।  घूमते हुए वे पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए बैठे।

इसी दौरान जरा नामक शिकारी का बाण उनके पैर के अंगूठे में जाकर लगा। जरा शिकारी ने यह हिरन का मुख समझ मारा था। श्री कृष्ण के पैरों में लगा बाण देख शिकारी उनसे क्षमा मांगने लगा तो उन्होंने जरा को अभयदान दिया और अपने प्राणों को त्याग दिया।

इसके बाद यदुवंशियों का अंतिम संस्कार किया गया जिसके अगले ही दिन वासुदेवजी ने भी प्राण त्याग दिए। अर्जुन वहां से स्त्रियों और बच्चों को जैसे ही हस्तिनापुर की ओर चले द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई।

द्वारका का निर्माण कैसे हुआ? | Dwarka ka nirman kaise hua?

आज से लगभग पांच हजार साल पहले श्री कृष्ण ने मथुरा छोड़कर द्वारका का निर्माण विश्वकर्मा के हाथों करवाया था। श्री कृष्ण अपने साथ यदुवंशियों को साथ लाये थे और इस नगर को अपना बसेरा बनाया था। द्वारका श्री कृष्ण की कर्मभूमि मानी जाती है जिसपर उन्होंने 36 वर्षों तक शासन किया।

जब श्री कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर दिया तो कंस के श्वसुर जरासंध ने श्री कृष्ण और यदुवंशियों का खात्मा करने की कसम खाई थी। इसके लिए वह आय दिन मथुरा पर आक्रमण करता रहता था। अन्तः यादवों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए श्री कृष्ण ने मथुरा को छोड़कर द्वारका जाने का निश्चय किया। द्वारका में उन्होंने लगभग 36 वर्षों तक शासन किया था।

Shri Krishna mathura chor ke Dwarka kyu gaye? | कृष्ण मथुरा छोड़कर द्वारका क्यों गए?

पौराणिक कथा के अनुसार, जरासंध द्वारा प्रजा पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए भगवान श्री कृष्ण मथुरा को छोड़कर चले गए थे. श्रीकृष्ण ने समुद्र किनारे अपनी एक दिव्य नगरी बसायी. इस नगरी का नाम द्वारका रखा. माना जाता है कि महाभारत के 36 वर्ष बाद द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी. महाभारत में पांडवों की विजय हुई और सभी कौरवों का नाश हो गया था. इसके बाद जब युधिष्ठिर का हस्तिनापुर में राजतिलक हो रहा था, उस समय श्रीकृष्ण भी वहां मौजूद थे.

तब गांधारी ने श्रीकृष्ण को महाभारत युद्ध का दोषी ठहराते हुए भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि अगर मैंने अपने आराध्य की सच्चे मन से आराधना की है और मैंने अपना पत्नीव्रता धर्म निभाया है तो जो जिस तरह मेरे कुल का नाश हुआ है, उसी तरह तुम्हारे कुल का नाश भी तुम्हारी आंखों के समक्ष होगा. कहते हैं इस श्राप की वजह से श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी पानी में समा गई.

 

The Submersion of Dwarka:
हिन्दू धरोहर के अनुसार, द्वारका को एक प्रलयकारी घटना का सामना करना पड़ा था जिससे इसे समुद्र के नीचे डूब जाना था। कहा जाता है कि नगर को भगवान कृष्ण के भूतल से विदा होने के बाद ही कुछ समय बाद लहरों ने इसे अपने बहुत्व में ले लिया। इस घटना को हिन्दू कोशमेष्ठ में “द्वापर युग” के समापन से जोड़ा जाता है, जो हिन्दू कोशमेष्ठ में एक युग है।

Jay Shree Krishna: द्वारका नगरी समुद्र के नीचे छुपी हुई रहस्यमयी 1 नगरी

Archaeological Discoveries:
द्वारका के रहस्योद्घाटन की खोज ने 20वीं सदी की अंत में उपसागर में अवशेषों की खोज की। डॉ. एस आर राव के नेतृत्व में समुद्री पुरातात्वशास्त्रीय वैज्ञानिकों ने गुजरात के तटों के बाहर एक समुद्री नगर के शेषों का पता लगाया। इन खोजों में एक बड़े समुद्री दीवार और आभूषणों जैसी संरचनाएं शामिल हैं, जिनसे यह साबित होता है कि डूबा हुआ शहर वास्तविकता में प्राचीन द्वारका हो सकता है।

Debates and Controversies:
अंतर्निहित नगर को द्वारका के रूप में पहचानने पर वैज्ञानिक और पुरातात्विक समुदायों में संदेह और वाद हुआ है। कुछ शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि समुद्री अवशेष विश्वासयोग्यता के साथ पुरातात्विक पाठों के विवरणों के साथ मेल खाता है, जबकि दूसरों का तर्क ​​है कि निर्णायक साक्षात्कार की कमी है।

Technological Advancements:
हाल के समुद्री पुरातात्विक और प्रौद्योगिकी में पूर्वागामी प्रगतियों ने शोधकर्ताओं को समुद्र के नीचे स्थलों की और से सुनिश्चित रूप से जाँचने की क्षमता प्रदान की है। सोनार मैपिंग, समुद्री रोबोटिक्स, और उन्नत इमेजिंग तकनीकें ने द्वारका के तटों के बाहर समृद्धि को नए दृष्टिकोण से देखने के लिए नई सूचनाएँ प्रदान की हैं।

Conclusion:
द्वारका नगरी, अपने पौराणिक महत्व और रहस्यमयी डूबने से लेकर, आकर्षण और रहस्यमयी होने का विषय बनी हुई है। चाहे इसे पौराणिक दृष्टिकोण से देखा जाए या आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों से अन्वेषित किया जाए, द्वारका के रहस्यों को खोजने की कड़ी निष्ठा भारत के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर की धाराओं का प्रतिबिंबित होती है। डूबे हुए शहर को हमारे अतीत के रहस्यों की खोज में ज्ञान के लगातार की पुरस्कृति के बीच एक साक्षात्कार के रूप में खड़ा करना है।

 

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