Shri Nageshwar Jyotirling 12 ज्योतिर्लिंगों में दसवें स्थान पर स्थित है।
Shri Nageshwar Jyotirling सुप्रिय नामक एक बड़ा धर्मात्मा और सदाचारी वैश्य था। वह भगवान् शिव का अनन्य भक्त था। वह निरन्तर उनकी आराधना, पूजन और ध्यान में तल्लीन रहता था। अपने सारे कार्य वह भगवान् शिव को अर्पित करके करता था। मन, वचन, कर्म से वह पूर्णतः शिवार्चन में ही तल्लीन रहता था। उसकी इस शिव भक्ति से दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था
उसे भगवान् शिव की यह पूजा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं लगती थी। वह निरन्तर इस बात का प्रयत्न किया करता था कि उस सुप्रिय की पूजा-अर्चना में विघ्न पहुँचे। एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उस दुष्ट राक्षस दारुक ने यह उपयुक्त अवसर देखकर नौका पर आक्रमण कर दिया। उसने नौका में सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर कैद कर लिया। सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान् शिव की पूजा-आराधना करने लगा।
Shri Nageshwar Jyotirling अन्य बंदी यात्रियों को भी वह शिव भक्ति की प्रेरणा देने लगा। दारुक ने जब अपने सेवकों से सुप्रिय के विषय में यह समाचार सुना तब वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर उस कारागर में आ पहुँचा. सुप्रिय उस समय भगवान् शिव के चरणों में ध्यान लगाए हुए दोनों आँखें बंद किए बैठा था. उस राक्षस ने उसकी यह मुद्रा देखकर अत्यन्त भीषण स्वर में उसे डाँटते हुए कहा- ‘अरे दुष्ट वैश्य! तू आँखें बंद कर इस समय यहाँ कौन- से उपद्रव और षड्यन्त्र करने की बातें सोच रहा है?’ उसके यह कहने पर भी धर्मात्मा शिवभक्त सुप्रिय की समाधि भंग नहीं हुई।
अब तो वह दारुक राक्षस क्रोध से एकदम पागल हो उठा। उसने तत्काल अपने अनुचरों को सुप्रिय तथा अन्य सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया। सुप्रिय उसके इस आदेश से जरा भी विचलित और भयभीत नहीं हुआ।
वह एकाग्र मन से अपनी और अन्य बंदियों की मुक्ति के लिए भगवान् शिव से प्रार्थना करने लगा। उसे यह पूर्ण विश्वास था कि मेरे आराध्य भगवान् शिवजी इस विपत्ति से मुझे अवश्य ही छुटकारा दिलाएँगे। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान् शंकरजी तत्क्षण उस कारागार में एक ऊँचे स्थान में एक चमकते हुए सिंहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए।
उन्होंने इस प्रकार सुप्रिय को दर्शन देकर उसे अपना पाशुपत-अस्त्र भी प्रदान किया। इस अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया। भगवान् शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा। बाद में इस स्थान पर एक बडे आमर्दक सरोवर का निर्माण हुआ। और ज्योतिर्लिंग उस सरोवर में समाहित हो गया।
शिव पुराण में गुजरात राज्य के भीतर ही दारूकावन क्षेत्र में स्थित Shri Nageshwar Jyotirling को ही Shri Nageshwar Jyotirling कहा जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति में भी Shri Nageshwar Jyotirling को दारूकावन क्षेत्र में ही वर्णित किया गया है। महात्म्य के अनुसार जो आदरपूर्वक इस शिवलिंग की उत्पत्ति एवं महात्म्य को सुनेगा और इसके दर्शन करेगा, वह सभी पापों से मुक्त होकर समस्त सुखों को भोगता हुआ अंततः परमपद को प्राप्त होगा।
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारं ममलेश्वरम् ॥1॥
परल्यां वैजनाथं च डाकियन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥2॥
वारणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।
हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥3॥
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरेण विनश्यति ॥4॥
॥ इति द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तुति संपूर्णम् ॥
पांडव कालीन इतिहास
युग बीते और आया द्वापर युग श्री कृष्ण का जन्म युग।
जब द्युत के खेल में कौरवों द्वारा पांचों पांडवों को पराजित किया गया था, तो द्यूत की शर्तों के अनुसार पांडवों को 12 वर्ष के वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास की सजा सुनाई गई थी. इस बीच, पांडवों ने पूरे भारत में भ्रमण किया। घूमते-घूमते वे इस दारुकवन में आ गए और इस स्थान पर उनके साथ एक गाय भी थी, वह गाय प्रतिदिन सरोवर में उतरकर दूध देती थी. एक बार भीम ने यह देखा और अगले दिन वह गाय का पीछा करते हुए सरोवर में उतर गया और उसने भगवान महादेव को देखा तो उसने देखा कि गाय हर दिन शिवलिंग को दुध छोड रही थी।
तब पांचों पांडवों ने उस सरोवर को नष्ट करने का निश्चय किया। और वीर भीम ने अपनी गदा से उस सरोवर के चारों ओर पर प्रहार किया और सभी ने महादेव के इस शिवलिंग दर्शन किये. श्री कृष्ण ने उन्हें उस शिवलिंग के बारे में बताया और कहा यह शिवलिंग कोई साधारण नही हे यह Shri Nageshwar Jyotirling है. तब पांचों पांडवों ने उस स्थान पर भूतल पर स्थित ज्योतिर्लिंग का भव्य अखंड पत्थर का मंदिर बनवाया।
यादव काल का इतिहास
और फिर से समय के साथ वर्तमान मंदिर हेमाडपंथी शैली में सेउना (यादव) वंश द्वारा बनाया गया था और कहा जाता है कि यह 13 वीं शताब्दी का है, जो सात मंजिला पत्थर की इमारत का बनाया था।
1600 शताब्दी के बाद का इतिहास
बाद में छत्रपति संभाजी महाराज के शासनकाल में Shri Nageshwar Jyotirling श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को औरंगजेब ने इस मंदिर की इमारतों को नष्ट कर दिया, औरंगजेब की जीत के दौरान इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था। मंदिर के वर्तमान खड़े शिखर का पुनर्निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा किया गया था। और हम इसे आज भी देखते हैं।
हर साल इस मंदिर मे लाखो के संख्या मे लोग आते हे. महाशिवरात्री के उत्सव पर यहा का सबसे बडा मेला लगता हे ओर रथोत्सव मनया जाता हे महाशिवरात्री के ठीक 5 दिन बाद रथोत्सव मनया जाता हे
गुजरात के सौराष्ट्र की खाड़ी में स्थित, गोमती द्वारका और बैट द्वारका के बीच, Shri Nageshwar Jyotirling भारत में लोकप्रिय ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। हजारों भक्त साल भर मंदिर में नागनाथ की आराधना करते हैं, ताकि वे नागेश्वर महादेव के पवित्र श्राइन से आशीर्वाद प्राप्त कर सकें जो एक अंधेरे गुफा में स्थित है। 25 मीटर ऊँचा भगवान शिव का मूर्ति, बड़े बगीचे और नीले अरब सागर की अवरुद्ध दृश्य, दर्शकों को मोहित करते हैं। यह भारत में सबसे शक्तिशाली ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो सभी प्रकार के विषों की संरक्षा का प्रतीक है।
मंदिर का समय: सप्ताह के सभी दिन सुबह 5 बजे से रात्रि 9 बजे तक खुला रहता है। भक्त दर्शन के लिए सुबह 6 बजे से दोपहर 12:30 बजे और शाम 5 बजे से रात्रि 9 बजे तक जा सकते हैं।
कैसे पहुंचें: नागेश्वर के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन द्वारका स्टेशन और वेरावल स्टेशन हैं। जामनगर हवाई अड्डा (45 किमी) द्वारका के निकटतम हवाई अड्डा है।
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