श्रीराम राघवन की फिल्म ‘मेरी क्रिसमस’ आज सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई है। इस फिल्म में कटरीना कैफ और विजय सेतुपति ने मुख्य भूमिका में अभिनय किया हैं। ये दोनों पहली बार एक साथ पर्दे पर नजर आ रहे हैं। फिल्म के गाने भी बहुत पसंद किए जा रहे हैं। इस फिल्म की समीक्षा पढ़ने से पहले आपको टीवी9 की इस रिव्यू को ज़रूर देखना चाहिए।
श्रीराम राघवन की नई रिलीज़ ‘मेरी क्रिसमस’ को देखने के बाद, मेरे मन में यह ख्याल था कि यह एक रात की कहानी है। एक मौत, एक से ज्यादा हत्यारे, और एक क़ातिल की खोज। इसके साथ ही, एक फिल्म देखने का अनुभव।
फिल्म श्रीराम राघवन की बनाई गई छठी फिल्म है और इसमें हिंदी सिनेमा के इक्किसवें दशक का अद्वितीय स्वाद है। इसके बैकग्राउंड म्यूजिक और साउंडट्रैक में भी कुछ नए और दिलचस्प तत्व हैं।
इक्कीसवें दशक में, ‘मेरी क्रिसमस’ एक फिल्म है जो श्रीराम राघवन ने निर्देशित की है, और यह बिना संदेह के कहा जा सकता है कि यह बार-बार हमें नई रुचिकर कहानी प्रदान कर रहा है. ‘एक हसीना थी’ की शुरुआत से इस डायरेक्टर ने ‘जॉनी गद्दार’ की ओर बढ़ते हुए ‘मेरी क्रिसमस’ तक पहुंचा है. इस बीच, उन्होंने ‘अन्धाधुन’ भी बनाई है. इसमें, विविधता का एक शानदार उदाहरण है, लेकिन इन सभी में राघवन का साहित्य है. कहानी एक क्रिकेट मैच के आसपास घूमती है – पहले पॉवरप्ले में मजबूत, रनकोड बनाने वाले खिलाड़ियों का परिचय। फिर बीच के ओवरों में मिडल ऑर्डर द्वारा कहानी को आगे बढ़ाना, और दर्शकों के मन में रैबीट होना कि ‘अगला क्या होगा?’ इसके बाद, आख़िरी ओवरों में पॉवर हिटर्स को लेकर आना और कहानी को उलझाने का मार्ग दिखाना। यह फिल्म बिल्कुल ऐसा है.
फिल्म शुरू होती है और हमें बताती है कि यह कहानी अभी तक की नहीं है। हम अपनी कुर्सी पर बैठे हैं और धीरे-धीरे इस कहानी में गहराई में प्रवेश करते हैं। इस समय, मुंबई को बॉम्बे कहा जाता था, और इसका साबूत है एक अशोक स्तम्भ के सिक्के, डिस्को लाइट, और ट्रेन टिकट्स के पीछे छपे गए फिल्मी हीरो की तस्वीर के साथ। यह तब स्थापित होता है जब शहर की सबसे बड़ी बिल्डिंग के टाइट क्लोज़-अप के बाद फ्रेम ढीला होता है और ‘ज़िंदगी कैसी है पहेली’ सर्किल में इतना खुल जाता है कि हीरो, रास्ते की तलाश में होते हुए भी, बदहाल नजर आता है।
12 से 15 मिनटों बीत जाने के बाद, एक तथ्यवादी फिल्ममेकर का संकेत मिल जाता है। इस बार उन्होंने कहानी को उच्चतम गति देने का निर्णय लिया है। फिल्म दो मुख्य पात्रों के चारों ओर घूमती है – एल्बर्ट (विजय सेतुपति) और मरिया (कटरीना कैफ)। ये दोनों हिंदी ठीक से नहीं बोल पाते हैं, जिसका असर फिल्म के संगीत पर भी है, जिस पर बाद में चर्चा होगी। फिर, इन दोनों के बीच एक मीटिंग होती है और ये एक-दूसरे के घर पर पहुंचते हैं। इसके बाद, कहानी विभिन्न मोड़ों पर बदलती है, जो हर किसी को चौंका देती है।
विजय सेतुपति की अद्वितीयता का एक और कारण यह है कि उन्होंने अब तक बॉलीवुड में अपनी विभिन्नता साबित कर ली है। कई दशकों तक वह एक संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, और शाहरुख़ ख़ान के साथ काम कर चुके हैं, लेकिन उनका कोई एक निश्चित रूप नहीं बन पाया है। उनकी सच्चाई यह है कि वे एक निश्चित वर्ग के दर्शकों के बीच एक निश्चित जगह बना चुके हैं जो विभिन्नता की मांग करते हैं।
विजय ने इस बार एक ऐसे किरदार को अपनी शानदार अदाकारी के साथ निभाया है जिसे आपने कभी नहीं देखा होगा। उनकी तरह कोई भी फिल्म नहीं है। वे एक ऐसे शख्सियत को जी रहे हैं जिसे लोग मरकर भी नहीं भूल सकते हैं। कई साल बाद वे वापस आए हैं और उन्होंने इस बार भी अच्छे से जमा किया है।
कटरीना कैफ ने भी इस फिल्म में अद्वितीयता की मीटिंग की है। उनकी एक्टिंग में एक नया अंदाज़ है और उन्होंने अपने किरदार को बहुत अच्छे से निभाया है। उनकी आवाज, उनका भाषा, और उनकी छवि सभी बहुत ही सुरक्षित हैं।
फिल्म का संगीत भी बहुत ही मनमोहक है। ये सभी तारीखें के साथ आपको एक नए जगह ले जाएंगे। फिल्म के संगीत को मजबूती से प्रशंसा मिल रही है और यह लोगों को अपनी ज़िंदगी की सबसे अच्छी रात में ले जाएगा।
इस फिल्म में दो महत्वपूर्ण चरित्र हैं – कटरीना कैफ और विजय सेतुपति। इन दोनों के तरीके से डायलॉग देने की तरह, यह कहा जा सकता है कि रिचर्ड एटनबरो की ‘गांधी’ के बाद पहली बार किसी ‘हिंदी-केंद्रित’ फिल्म ने एक ऐसे मुद्दे का सामना किया है, जिसमें मुख्य किरदार हिंदी में बात नहीं करते। लेकिन दर्शकों के लिए इसमें कोई कठिनाई नहीं है, क्योंकि कहानी में सारी बातें होने के बावजूद इसका मुख्य फोकस कहानी पर है।
फिल्म ‘मेरी क्रिसमस’ में विजय सेतुपति और कटरीना कैफ के बाद सबसे बड़ा ‘कलाकार’ है, जो इसकी बैकग्राउंड म्यूजिक है। वास्तव में, यह फिल्म अपने पारंपरिक संगीत के कारण उभरी है, अन्यथा इसमें कुछ भी अद्वितीय नहीं है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक आपको अपनी उंगली पर खड़ा कर देता है, आपको एक ऐसी जगह ले जाता है जहां आप खुद को आह भरते हुए पाते हैं। इसमें इतनी यकीनी है कि यह एक आसान काम नहीं है। और वास्तव में, सभी गाने इसी तरह हैं। क्लाइमेक्स के आस-पास, आप यह समझ सकते हैं कि वॉयलिन की छायाएँ और ड्रम की धुनें के बीच एक बड़ी घटना हुई थी, जिसका फिल्म के स्वाद और निष्कर्ष से पूरा संबंध था। हालांकि, श्रीराम राघवन की फिल्मों को देखकर यह पता चलेगा कि यह कोई नई बात नहीं थी। ‘मेरी क्रिसमस’ फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक बिल्कुल एल्फ़्रेड हिचकॉक की फ़िल्मों के बैकग्राउंड स्कोर को याद दिलाता है, खासकर ‘नॉर्थ बाय नॉर्थवेस्ट’ की। इन दोनों निर्देशकों के किस्सों में कहानियों के सुनाने के तरीके में बहुत समानता है। कौन किस पर असर करता है, इसे जन्मतिथि देखकर पता लगाया जा सकता है।